छोड़ दिया है उसपर सबकुछ
वह जिसका मन्दिर बना
पूजते हैं सब
दर पर कभी सर उसके झुकाया नही
न अर्चना का थाल ले
प्रशंसा के गीत गाये
न मन्दिरों मे सर नवाया
बस उसे तो लिऐ दिल में
रहे घूमते हम
दुख में रुलाते, सुख में हँसाते
रहे हम उसे
दूर कभी खुद से समझा नही उसको
सुनाते रहे उसे ही
अपनी हर कहानी हमेशा
बहेंगे उसी की धारा मे
जिस किनारे लगाये
या भंवर मे फसाये
बस बहते चलेंगे
मज़ा सफर का लेते रहेंगे