किवाड़ों की झिर्रियों से क्यों रोशनी देती है दस्तक
है आतुर क्यों
सवेरा आने को अंदर
सुबह क्यों धूप की पायल पहन
करती है चहल पहल
पन्छी क्यों खिलखिलाते से
उड़ते हैं हर तरफ
ठहरता भी है उड़ता भी है
यह मन क्यों हर पल
समय जो बुरा था
अब बीत गया है शायद …