आ चल उड़े ऐ मन
नाप ले आज ये सारा गगन
नीले से अम्बर मे डूबे हम आज
और सागर मे पंख फैला ले हम परवाज़
हर तारे को चल छू कर हम आयें
और व्योम की स्याह सर्द मे खिलखिलायें
बारिश की बूँदों पर चढ़कर
आकाश को चल छू ले
खुशबू मे समायें, हर रंग में बस जायें
छाँव को सहलाये, रोशनी को पकड़ लायें
चल हवा पर बैठ करें दरिया की सैर
फ़ूलती साँसों को फिर पानी से गटक जायें
चल आज तो बस खुद को अपने से मिलायें
आ चल ऐ मन इस दुनिया से आगे निकल जायें
aap bahut achchha likhati ho.
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Thank u Mam..ur writings r very mature and beautiful…liked them a lot
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