बहुत कुछ रह गया अनकहा
बहुत कुछ छूट गया जहाँ का तहाँ
जाने वाले चले गये न जाने कहाँ
देकर हमें यादों का कारवाँ
Month: अगस्त 2015
स्त्री
हर दिन टूटती हूँ
हर दिन बिखरती हूँ
एक एक टुकड़ा समेटती हूँ हर दिन
सहेजती हूँ फिर से खड़ा करती हूँ खुद को
हर दिन
निरऩतर चलता रहता है प्रयास
जीवन बस प्रयत्न है अनन्त
एक नज़र एक शब्द से
बिखर जाता है पूरा प्रयास
मन का हर कोना हो जाता है छलनी
फिर पिरोती हूँ खुद को समय के धागों मे
स्त्री हूँ
हर दिन स्वयं को कर्मो के चक्र में
भूल जाती हूँ
उठना गिरना चलता है प्रतिदिन
हर दिन