क्यों तोड़ने की बातें करते हो
क्यों नहीं मिल कर खुशियाँ मनाते
दिल की चोट मन की पीड़ा
क्यों नहीं प्यार से हर ज़ख़्म मिटाते
घावों की टीस बद्दुआ न बन जाए कहीं
इतना भी नहीं किसी को सताते
दुख देकर कभी सुख मिलता नहीं
आँसुओं से फूल हैं क्या कभी खिल पाते
मुस्कुराहटे देकर किसी को कभी
चलो आओ अपने दिल को हैं सजाते
दिल पर, कुछ तुम्हारे कुछ हमारे
आओ है मिलकर मरहम लगाते..
बहुत खूब
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