प्यार ले मै अपना
द्वार से तुम्हारे निकल आया
घृणा तुम्हारी संग चली कुछ दूर
हारी थकी अकेली सी फिर लौट गई
राह हुई फिर अलग हमारी
तुम्हारे संग घृणा तुम्हारी
हमने तो प्यार हमारा
समेट लिया कतरा कतरा
मन था शान्त चितत् थोड़ा उदास
कहीं दुख तो न हुआ होगा तुम्हें
देख खुद से दूर जाते हमें
प्यार भी टपका अश्रु बन आँखों से मेरे
पर सींच न पाया घृणा के काँटे तेरे
घृणा तुम्हारी लौटेगी तुमतक
हो बलवान अधिक
और प्यार मेरा सिमटेगा मुझतक
जीतेगा कौन और हारा कौन
गूँजेगा प्रश्न यही
अब सदी दर सदी…
बहुत सुन्दर. जीतता तो प्यार ही है. जो घृणा में बदले वो प्यार ही नही.
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*PARIS :made me write this..
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