लक्ष्मण रेखा में बाँधा मुझे
मर्यादा मे समेटा
मेरे वेग को आवेग को
हर युग में है जकड़ा
कभी देवी कभी माता
परिभाषा मे है बाँधा
सदियों से मेरी भावनाओं की
अथाह गहराई को तुमने
बस झलक भर है देखा
विचलित हुए भयभीत हुए
पर रूप को पूरा मेरे
तुमने अभी है कहाँ जाना
मेरे प्यार को विश्वास को
कमजोरी मेरी माना
मेरे समर्पण की शक्ति
को तुमने कहाँ है समझा
तुम तो विजेता रहे
खुद को हार कर जीना
तुमने कहाँ है जाना
जाओगे जब सीख
रक्षक बनने की कला
साहस, वीरता बन जायेगा
स्त्रीत्व लिए पुरुष तब
नया युग बनायेगा ….
bahut sahi aur sundar abhivyakti hai, Mridulaji.
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Thank u Indira ji..happy women’s day 😊
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