करती हूँ चित्रों को
शब्दों में व्यक्त करने का प्रयत्न
दूर मुझे आता है नज़र
अपनी खिड़की से गुलमोहर
बरसता भी है सावन
पर हूँ क्यों इन्हें
शब्दों में बाँधने मे
मै असफल
वो बादलों से घिरा
आकाश का टुकड़ा
जो दिखता है मेरे झरोखे से
क्यों मुझे और मेरे शब्दों को
हराकर चल देता है
बरसती बूँदों के शब्द भी
मेरे शब्दों से खाते नही मेल
वो गुलमोहर भर देता है मन को
नारंगी और हरी प्रसन्नता से
बरसात बादल बूँदे देते है भिगा
मन को अनजानी खुशी से
पर न जाने ये क्यों
मेरे शब्दों मेरी अभिव्यक्ति से
लगते है असहमत