खो गये हो तुम कहाँ
समझ नही आता है
रात को भी चाँद
अब इधर नही आता है
तारों का काफिला
न जाने कब गुज़र जाता है
आँखों में भी तो अब
कोई ख्वाब नहीं समाता है
यादों की चादर
सिकुड़ सी गई है कुछ
ढकते हैं टीस तो
ज़ख़्म नज़र आता है
महीना: जुलाई 2017
तुम राजनीति बहुत करते हो
गीता और कुरान में
तुम फूट डालने की
कोशिश करते हो
यार तुम
राजनीति बहुत करते हो
डरते हो हारने से
इसलिए तोड़ते हो लोगों को
बहादुर बनने की कोशिश
तो तुम बहुत करते हो
यार तुम
राजनीति बहुत करते हो
सदियों से न जाने कितने जिस्म
समा गए इस मिट्टी में
अब हर कतरे को
इस ख़ाक से अलग
करने की कोशिश करते हो
यार तुम
राजनीति बहुत करते हो
अन्धेरों को रहनुमा बनाते हो
रोशनी मे खुद से ही डरते हो
लफ्जों से सूरज को
ढकने की कोशिश करते हो
यार तुम
राजनीति बहुत करते हो
भक्ति राग
मन्त्रमुग्ध तुम स्वयं पर
मस्त अपनी विजय पर
भूल धरातल को तुम
उड़ोगे ऊँचे आसमान में
खुद के ही शोर से
बहरे होते तुम
शब्द अब तर्क के
सुनाई तुम्हें देते नही
कर्णप्रिय लगते तुम्हें
केवल स्वयं के भक्ति राग
अपने ही गढे झूठ में
सही गलत से दूर तुम
भाई मेरे
मान था गुमान था
बहन होने पर तेरी
मुझे बड़ा अभिमान था
पर दुआओं मे मेरी
शिद्दत न थी
ड़ोरी मे मेरी कोई ताकत न थी
बाँध न सकी बचा न सकी
तुझे नियति से छुड़ा न सकी
साथ तेरा जो छूटा
भाई मेरे
बचपन से नाता है जैसे टूटा
हाथ पकड़ तेरा
लगाई थी जो दौड़
तेज़ उससे दौड़ न पाई आज तक कभी
मार खाई ,पलट कर मारा भी था तुझे
चुगली कर मार, माँ से खिलवाई भी थी तुझे
चेहरे पे तेरे शिकन न देख
शरम भी आई थी मुझे
दोस्त था तु भाई मेरा सबसे पहला
गिल्ली डण्डा तेरे साथ ही खेला था आखिरी
और पहला पहला
दौड़ती हूँ सपनों में आज भी
हाथ थाम कर तेरा
पर पहुंच पाती हूँ नहीं कहीं
आया भी था तू संग ले जाने मुझे
बंधन इस जहान के
छोड़ न पाये थे मुझे
इक कतरा भी तेरे प्यार का अगर
तेरे बच्चों तक पहुंचा पाऊँ
आँखें उस जहान मे तुझसे
तब शायद मैं मिला पाऊँ