मान था गुमान था
बहन होने पर तेरी
मुझे बड़ा अभिमान था
पर दुआओं मे मेरी
शिद्दत न थी
ड़ोरी मे मेरी कोई ताकत न थी
बाँध न सकी बचा न सकी
तुझे नियति से छुड़ा न सकी
साथ तेरा जो छूटा
भाई मेरे
बचपन से नाता है जैसे टूटा
हाथ पकड़ तेरा
लगाई थी जो दौड़
तेज़ उससे दौड़ न पाई आज तक कभी
मार खाई ,पलट कर मारा भी था तुझे
चुगली कर मार, माँ से खिलवाई भी थी तुझे
चेहरे पे तेरे शिकन न देख
शरम भी आई थी मुझे
दोस्त था तु भाई मेरा सबसे पहला
गिल्ली डण्डा तेरे साथ ही खेला था आखिरी
और पहला पहला
दौड़ती हूँ सपनों में आज भी
हाथ थाम कर तेरा
पर पहुंच पाती हूँ नहीं कहीं
आया भी था तू संग ले जाने मुझे
बंधन इस जहान के
छोड़ न पाये थे मुझे
इक कतरा भी तेरे प्यार का अगर
तेरे बच्चों तक पहुंचा पाऊँ
आँखें उस जहान मे तुझसे
तब शायद मैं मिला पाऊँ
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने और बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति हुई है।
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धन्यवाद रजनी जी ..
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Simply beautiful
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😊
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