हिम्मत

ज़रूरत नही तलवार
या किसी हथियार की
हराने को तुम्हें
मेरी हिम्मत ही काफी है
मेरे बढते कदम से ही तुम
घबरा जाओगे
डराने को तुम्हें
मेरी रफ्तार ही काफी है
झूठ से दीवारें चिनाई हैं तुमने
नीव तुम्हारी दरकाने को
मेरी चिंघाड़ ही काफी है
डर के शोर से बहरी है
सेना तुम्हारी
रण छोड़ भगाने को
निशब्द प्रातिकार ही काफी है

 

Advertisement

दोस्त मेरे

गालियों से भी
उम्र मेरी बढ़ा
जाते हो तुम
याद आओ न आओ
भुलाए नही
जाते हो तुम
अमावस की रात के
जैसे सितारे हो तुम
काली हो जितनी रात उतना ही
तेज़ झिलमिलाते हो तुम
याद आओ न आओ
भुलाए नही जाते हो तुम

Limitless

polo792

And in the end we are who we are and what we can become or what we may lose. In the end it’s only you who is there. For eternity isn’t what exist but only a thought of it. We are amongst the few who withheld the power of supremacy and the power of gratitude. We are the ones who looked beyond the horizon and the depth of sea because sky is not the only limit that exist. A part of us exists in the sands which blow with the wind and a part of us exists in the immovable land and rocks. We may believe our mere existence is just what we see and that too bound by the thoughts of others. We may never see what we can become. But there is you. A greater you standing against all odds.

View original post

कहानी फिर वही

हर बार तुम कहानी फिर
वही दोहरा देते हो
चेहरा अपना छिपाने को
कालिख मेरे लगा देते हो
राम तो तुम बन न सकोगे
पर सीता फिर बना देते हो
हर बार तुम कहानी फिर
वही दोहरा देते हो
डरते हो मेरे तेज से
तो मर्यादा मुझे उड़ा देते हो
करते हो अपमानित मुझे
और लांछन मुझे ही लगा देते हो
हर बार तुम कहानी फिर
वही दोहरा देते हो

टीस

खो गये हो तुम कहाँ
समझ नही आता है
रात को भी चाँद
अब इधर नही आता है
तारों का काफिला
न जाने कब गुज़र जाता है
आँखों में भी तो अब
कोई ख्वाब नहीं समाता है
यादों की चादर
सिकुड़ सी गई है कुछ
ढकते हैं टीस तो
ज़ख़्म नज़र आता है

तुम राजनीति बहुत करते हो

गीता और कुरान में
तुम फूट डालने की
कोशिश करते हो
यार तुम
राजनीति बहुत करते हो
डरते हो हारने से
इसलिए तोड़ते हो लोगों को
बहादुर बनने की कोशिश
तो तुम बहुत करते हो
यार तुम
राजनीति बहुत करते हो
सदियों से न जाने कितने जिस्म
समा गए इस मिट्टी में
अब हर कतरे को
इस ख़ाक से अलग
करने की कोशिश करते हो
यार तुम
राजनीति बहुत करते हो
अन्धेरों को रहनुमा बनाते हो
रोशनी मे खुद से ही डरते हो
लफ्जों से सूरज को
ढकने की कोशिश करते हो
यार तुम
राजनीति बहुत करते हो

चल पड़े हैं जब ज़ानिबे मंजिल
हमकदम मिले न मिले
राहे नक्शेकदम से गुलज़ार रहे
मंजिलें  मिले न मिले

भक्ति राग

मन्त्रमुग्ध तुम स्वयं पर
मस्त अपनी विजय पर
भूल धरातल को तुम
उड़ोगे ऊँचे आसमान में
खुद के ही शोर से
बहरे होते तुम
शब्द अब तर्क के
सुनाई तुम्हें देते नही
कर्णप्रिय लगते तुम्हें
केवल स्वयं के भक्ति राग
अपने ही गढे झूठ में
सही गलत से दूर तुम