मन्त्रमुग्ध तुम स्वयं पर
मस्त अपनी विजय पर
भूल धरातल को तुम
उड़ोगे ऊँचे आसमान में
खुद के ही शोर से
बहरे होते तुम
शब्द अब तर्क के
सुनाई तुम्हें देते नही
कर्णप्रिय लगते तुम्हें
केवल स्वयं के भक्ति राग
अपने ही गढे झूठ में
सही गलत से दूर तुम
मन्त्रमुग्ध तुम स्वयं पर
मस्त अपनी विजय पर
भूल धरातल को तुम
उड़ोगे ऊँचे आसमान में
खुद के ही शोर से
बहरे होते तुम
शब्द अब तर्क के
सुनाई तुम्हें देते नही
कर्णप्रिय लगते तुम्हें
केवल स्वयं के भक्ति राग
अपने ही गढे झूठ में
सही गलत से दूर तुम
भीड़ से पीछे रह जाना
भी कभी अच्छा होता है
हर रिश्ता खुशी ही दे
यह ज़रूरी तो नहीं
कुछ रिश्तों को राह
मे छोड़ जाना
भी कभी अच्छा होता है
हर आँख तुम्हें सही तौले
ये ज़रूरी तो नहीं
इन तराजू से दूर
खुद को कर पाना
भी कभी अच्छा होता है
भीड़ के संग बहक जाना
ये ज़रूरी तो नहीं
गलत हो कदम तो
पाँव को अपने थाम लेना
भी कभी अच्छा होता है
क्यों सीमाओं में बंधते हो
कभी जात की कभी धर्म की
क्यों बाँधा हैं खुद को
देश में कभी समाज में
जकड़ा हैं स्वयं को
कभी उम्र में कभी ओहदे में
कभी मोह में कभी ऐश्वर्य में
कभी काले में तो कभी गोरे में
कभी स्त्री में कभी पुरुष मे
खुद ही अपने को बाँध लिया
बड़े में तो कभी छोटे मे
न होता यह सब
तो उड़ते स्वच्छंद हम भी आकाश में
बस मन का ही तो फेर था
और डर का ही तो खेल था
इक जीना ही तो था
क्या पा लिया विकास से
घरौंदे छोटे होते गये
इस गोले से बाहर तक तो निकल न सके
इक दूजे पर गोलियां चलाना और सीख गये
इतने ही काबिल थे तो जहान बनाते नये
और छोटे होते गए दायरे
कभी भाषा के तो कभी संस्कार के
मन जकडता गया
छोटे होते में कारावास में
तकदीरें बदला नही करती
वक्त के साथ भर जाता है घाव
रफ्तार जिन्दगी की रुका नही करती
लकीरें हथेली की घिस जाती हैं
नियति फिर भी पलटा नही करती
थक जाते हैं मन पाँव शरीर
मंजिले अपनी जगह से हिला नहीं करती
सूख जाते हैं सागर दरिया
सूरज की गर्मी कम हुआ नही करती
धूप ढल जाती है जीवन की मु्ंड़ेर से
परछाईं यादों की साथ छोड़ा नही करती
जिन्दगी तकदीरों से लड़ा नहीं करती
क्योंकि
तकदीरें ऐ दोस्त बदल नही करती
कहा जिन्दगी के अन्धेरो ने
मेरे घर के जलते दियों से
बुझाने तुम्हें मैं आऊंगा हर रात
जलते रह सको है कहाँ तुममें वह बात
दिया मेरा फड़फड़ाता रहा
तेल और बाती का था उसको साथ
अन्धेरों ने हवाओं को था भेजा
जूझता रहा दिया मेरा
आस का थाम हाथ
सवेरे का उसको सहारा था
समय ने इक वादा जो निभाना था
न रहूँगा एकसा हरदम
अन्धेरों के बाद
तो रोशनी को ही आना था …..
ख्वाहिशों ने जीने न दिया
तमन्नाओं ने मरने न दिया
यादों ने सोने न दिया
ख्वाबों ने जगने न दिया
करते तो क्या करते
दर्द ने हँसने न दिया
और
आस ने रोने न दिया
हर ज़ख़्म रूह पर निशान छोड़ गया
हर घाव शख्सियत हमारी बदल गया
ढूंढने पर भी न पा सके खुद को
अक्स भी अपना पराया हो गया
न जाने वक्त बदल गया
कि आइना बदल गया
बड़े हो,
तो बड़प्पन का मौका है
ले लिया जिस दिन
छोटों ने यह अधिकार
कद तुम्हारा उस दिन
बहुत अदना होगा
झुकता वही जो होता बड़ा है
छोटा तो बस बड़ा होने की
कोशिश भर कर सकता है
शक्ति मिली
गर औरों से ज्यादा
दर्शाने से बड़ेगी नही
ताकत वही
है सबसे बड़ी
जो हो सके कभी
निर्बलो के लिए खड़ी
बिझड़ने से ही लोग
जुदा नही होते
पास होकर भी ऐ दोस्त
फ़ासले बहुतेरे हैं
दरियाओं से ही सिर्फ
समन्दर नहीं बनते
इन आँखों से भी बहे
सागर बहुतेरे हैं
आग से ही नही जले
आशियाने दुनिया में
शक ने भी किये खाक
रिश्ते बहुतेरे हैं
मेरे हर कण में है समायी तू
हो कर दूर मुझसे है तू जुदा कहाँ
मेरे हर आँसू मे है साथ तू रोई
हर ख्वाब की है ताबीर तू
हर सोच की है नीव तू
समायी है रग रग में
बही हर बूँद में
मेरे रूप मे स्वरूप में
मेरे हाव मे और भाव मे
मेरी क्रिया में प्रतिक्रिया मे
माँ , तेरी ही तो हूँ
बस इक तस्वीर मै…