मन्थन तो होगा ही
अमृत भी निकलेगा
और विष भी
बस विषपान करने को
कोई नीलकंठ न होगा
थोड़ा थोड़ा हम सब को
ही विष चखना होगा
कुछ बौरायेंगे
कुछ बहकेंगे
संभलना भी होगा
संभालना भी स्वयं ही होगा
अमृत के प्रकट होने तक
मन्थन तो होगा ही
अमृत भी निकलेगा
और विष भी
बस विषपान करने को
कोई नीलकंठ न होगा
थोड़ा थोड़ा हम सब को
ही विष चखना होगा
कुछ बौरायेंगे
कुछ बहकेंगे
संभलना भी होगा
संभालना भी स्वयं ही होगा
अमृत के प्रकट होने तक
‘संभालना भी स्वयं ही होगा
अमृत के प्रकट होने तक’ bahut sundar.
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Thank u..
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